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ईरान से तेल खरीद को लेकर अमेरिका बढ़ा रहा है भारत की चिंता, दे रहा है धमकी

अमेरिका एक बार फिर से ईरान को केंद्र में रखकर दुनिया में ऑयल वार की शुरुआत करता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि उसने अपनी दादागीरी दिखाते हुए दुनिया भर के देशों को चेतावनी दी है कि वह आगामी चार नवंबर तक ईरान से तेल खरीदना बंद करें। अन्यथा नए सिरे से अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करें। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले का मकसद ईरान को आर्थिक मोर्चे पर एकदम अलग-थलग करना है। अमेरिका की इस चेतावनी का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि भारत अपनी जरूरत का ज्‍यादातर ईरान से ही खरीदता है। ऐसे में अमेरिकी चेतावनी को भारत किसी भी सूरत से हलके में नहीं ले सकता है।

तेल का भंडार बढ़ाएगा भारत
हालांकि इसके उपाय स्‍वरूप भारत ने अब अपने तेल भंडारण को बढ़ाने का उपाय करने को हरी झंडी दे दी है। यह सब कुछ ईरान के साथ अमेरिका के बिगड़ते रिश्‍तों और भारत की जरूरत को देखते हुए किया जा रहा है। देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाने की दिशा में सरकार ने आपात स्थिति का सामना करने के लिए अपनी भंडारण क्षमता में वृद्धि करने का फैसला किया है। इसके तहत 65 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण व्यवस्था बनाने का निर्णय लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को कर्नाटक के पदुर और ओडिशा के चांदीखोल में अतिरिक्त आपातकालीन पेट्रोलियम भंडार (एसपीआर) स्थापित करने संबंधी एक प्रस्ताव को मंजूरी दी।

22 दिन की जरूरत का तेल होगा जमा
यह भंडारण व्यवस्था बनने के बाद आपात स्थिति होने पर 22 दिन तक देश की पेट्रोलियम की जरूरत पूरी हो सकेगी। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कैबिनेट फैसलों जानकारी देते हुए कहा कि चांदीखोल में 40 लाख टन और पदुर में 25 लाख टन के लिए भूमिगत भंडारण व्यवस्था होगी। सरकार का कहना है कि दोनों राज्यों में इन परियोजनाओं से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित होने की उम्मीद है। सरकार ने वर्ष 2017-18 के बजट में पेट्रोलियम के आपात भंडारण की व्यवस्था के लिए दो रिजर्व बनाने की घोषणा की थी। ये परियोजनाएं पीपीपी आधार पर बनायी जाएंगी। इसके लिए जरूरी नियमों और शर्तो का निर्धारण वित्त मंत्रलय के साथ विचार-विमर्श के बाद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय करेगा।

तेल की घरेलू मांग का बड़ा हिस्‍सा खरीदता है भारत
उल्लेखनीय है कि भारत अपनी जरूरत का तीन चौथाई से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में लंबे समय से सरकार की कोशिश रही है कि देश में आपात स्थिति के लिए पेट्रोलियम भंडारण किया जाए। इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (आइएसपीआरएल) अब तक तीन जगहों विशाखापत्तनम में 13.3 लाख टन, मैंगलोर में 15 लाख टन और पदुर में 25 लाख टन के भंडार विकसित कर चुकी है। इस तरह कुल 53.3 लाख टन कच्चे तेल के भंडारण की भूमिगत व्यवस्था का निर्माण हो चुका है। पहले चरण के तहत बनी इस क्षमता से भारत की करीब 10 दिनों की कच्चे तेल की जरूरत को पूरा किया जा सकता है। जबकि 65 लाख टन की प्रस्तावित भंडारण क्षमता से करीब 12 दिनों के लिए अतिरिक्त आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी। पहले चरण में पेट्रोलियम भंडारण क्षमता बनाने पर सरकार ने 4000 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च की थी।

भारत की चिंता जायज
हालांकि इसके बाद भी भारत की चिंता अपने आप में जायज है। यहां पर भारत की चिंता सिर्फ तेल खरीद को ही लेकर नहीं है बल्कि इसकी वजह भारत और अमेरिका के बीच व्‍यापारिक संबंध भी खराब हो सकते हैं। आपको बता दें कि इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने को लेकर पहले से ही अमेरिका और भारत के बीच कुछ खींचतान चल रही है। ऐसे में अमेरिका की तरफ से ईरान को केंद्र में रखकर मिली चेतावनी भारत के लिए चिंता का सबब हो सकती है। हालांकि जहां तक ईरान से तेल खरीद की बात है तो भारत इसके लिए पूरी कोशिश कर रहा है कि आपसी हित प्रभावित हुए बिना वह अपना काम कैसे निकाल सकता है। इसके लिए पिछले कुछ समय से अधिकारी विचार भी कर रहे हैं। गौरतलब है कि 8 मई को ईरान के साथ हुई परमाणु डील खत्‍म करने के बाद से ही अमेरिका ने ईरान की तरफ आंखें तरेरनी शुरू की है। यह डील ओबामा प्रशासन के दौरान जुलाई 2015 में ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के बीच हुई थी।

परमाणु डील तोड़ने पर यूएस से नाराज हैं देश
हालांकि यहां पर इन देशों ने अमेरिका के डील से बाहर होने के फैसले को खुलेतौर पर गलत करार देकर ईरान समेत अन्‍य देशों कुछ राहत जरूर दी है। भारत के लिए यहां पर यह एक संतोष करने की बात जरूर हो सकती है, लेकिन यह उतनी कारगर साबित नहीं होगी जितनी होनी चाहिए। यहां ये भी बताना जरूरी ईरान के सबसे बड़े तेल खरीददारों में भारत के अलावा चीन भी है। ऐसे में चीन के हित भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता ये भी है कि हम अपनी जरूरत का करीब 90 फीसद तेल बाहर से ही खरीदते हैं।

तेल उत्‍पादक देश और ओपेक समूह
यहां पर आपको ये भी बता दें कि ईरान ओपेक देशों के समूह का हिस्‍सा है, जिसके पास दुनिया के तेल रिजर्व का करीब 80 फीसद हिस्‍सा है और जो दुनिया की जरूरत का करीब आधा तेल सप्‍लाई करता है। इस संगठन में 15 देश हैं। इसमें अलजीरिया, अंगोला, इक्‍वाडोर, इक्‍वाटोरियल गुएना, गबोन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, कतर, कांगों, सऊदी अरब, यूएई, वेनेजुएला और इंडोनेशिया शामिल हैं। दो दिन पहले ही भारत ने कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों पर ओपेक देशों को चेताया भी था। भारत का कहना है कि कीमतें ऊंचे स्तर पर बने रहने से मांग में 10 लाख बैरल प्रतिदिन तक की कमी आ सकती है।

ओपेक की बैठक में भारत का पक्ष

पिछले हफ्ते विएना में हुई पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) की बैठक में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान और उनके साथ गए अधिकारियों ने तेल उत्पादकों के समक्ष उपभोक्ता देशों का पक्ष रखा था। प्रधान और इंडियन ऑयल के चेयरमैन संजीव सिंह ने बढ़ी कीमतों से मांग पर पड़ने वाले असर को लेकर एक अनौपचारिक पत्र भी उत्पादक देशों के सामने रखा। इसमें बताया गया कि यदि कीमतें 100 डॉलर प्रति डॉलर की ओर बढ़ती रहीं, तो 2025 तक मांग में रोजाना 10 लाख बैरल तक की कमी आ सकती है। भारत में 2017-18 में रोजाना औसतन 40 लाख बैरल तेल की मांग रही थी। एक साल पहले के मुकाबले इसमें 5.3 फीसद की वृद्धि हुई थी। जानकारों का मानना है कि भारतीय बाजार कीमत के प्रति संवेदनशील है। कीमतों में उछाल से मांग पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। बैठक के बाद ओपेक देशों ने उत्पादन बढ़ाने पर सहमति जताई है। ओपेक देशों की बैठक में 10 लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन बढ़ाने पर बनी सहमति के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है। दिन के कारोबार में ब्रेंट क्रूड 1.15 डॉलर गिरकर 74.40 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। पिछले हफ्ते हुई बैठक के तुरंत बाद फैसले में स्पष्टता नहीं होने से कीमतें बढ़ी थीं।

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