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AAP सरकार के लिए जनता के मुद्दे नहीं, वोट बैंक की राजनीति ज्यादा महत्वपूर्ण

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया तो उम्मीद बंधी थी कि अब सियासी संग्राम खत्म हो जाएगा। दिल्ली का विकास होगा और जनता की बुनियादी समस्याएं सुलझ पाएंगी, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। जनता के मुद्दे अनसुलङो रह गए, जबकि सर्विसेज के मसले पर नया टकराव शुरू हो गया है। टकराव के मद्देनजर दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता संजीव गुप्ता ने संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत के मुख्य अंश:

1. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर आपका क्या नजरिया है?

– सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 239 एए की ही व्याख्या की है, जिसमें दिल्ली की स्थिति का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि उपराज्यपाल की क्या शक्तियां हैं व निर्वाचित सरकार के क्या अधिकार हैं। कहां पर दोनों को साथ चलना है और कहां एक दूसरे की सहमति जरूरी नहीं है। सच तो यह है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जहां मूलत: केंद्र का शासन है। यह पूर्ण राज्य नहीं है। बता दूं कि जो विषय राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं, वहां केंद्र का हस्तक्षेप नहीं होता है। वहीं, जो विषय केंद्रीय सूची के अंतर्गत आते हैं, उनमें राज्य कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। मगर, दिल्ली को लेकर विधायी शक्तियां भी केंद्र के पास हैं। अगर कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि एक ही विषय पर केंद्र सरकार भी कानून बना दे और दिल्ली सरकार भी, तब प्राथमिकता केंद्र सरकार के कानून को मिलेगी। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय न देकर बहुत से मामले डबल बेंच को रेफर कर दिए हैं।

2. क्या उपराज्यपाल के अधिकारों में कटौती या दिल्ली सरकार के अधिकारों में इजाफे जैसी स्थिति है?

– दिल्ली सरकार को इतना तो फायदा हुआ है कि अब उसे हर फाइल एलजी को नहीं भेजनी होगी। इस पर भी खुश हुआ जा सकता है कि उपराज्यपाल अब मंत्रिमंडल की राय को अनदेखा नहीं करेंगे। हालांकि, संविधान के तहत उपराज्यपाल के पास अधिक अधिकार हैं। दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया भी वही हैं। जहां तक सर्विसेज का मामला है तो उसपर सुप्रीम कोर्ट ने कोई निर्णय नहीं दिया है। जब तक इस मसले पर कोई निर्णय नहीं आता है, स्वाभाविक रूप से यह विभाग पूर्ववत केंद्र सरकार के अधीन ही रहेगा।

3. इस टकराव की समस्या का समाधान क्या है?

– समाधान तो सीधा सा यही है कि दिल्ली सरकार और एलजी आपसी सहयोग से शासन चलाएं। पहले भी ऐसी नजीर पेश की गई है। पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 15 साल दिल्ली में राज किया और कभी भी ऐसा टकराव उत्पन्न नहीं हुआ। वह हर सप्ताह एलजी से मिलती थीं और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करती थीं। अगर आप सरकार भी जनता के हित में सामंजस्य स्थापित करके चले तो टकराव की नौबत ही नहीं आएगी।

4. क्या आप सरकार का अहंकार व अरविंद केजरीवाल की जिद बड़ी समस्या है?

– बिल्कुल, आप सरकार के लिए जनता के मुद्दे नहीं, वोट बैंक की राजनीति ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस सरकार ने आपसी सहयोग और तालमेल की जगह टकराव का रास्ता अख्तियार किया है। ध्यान रहे, राजनीतिक संघर्ष में जनता का ही नुकसान होता है। यह भी सरकार का अहंकार और केजरीवाल की जिद ही है कि इन्होंने साढ़े चार माह में भी अधिकारियों से विवाद नहीं सुलझाया है। अगर केजरीवाल चाहें तो अधिकारियों के साथ बैठक करके उन्हें सम्मान और सुरक्षा का आश्वासन देकर टकराव खत्म कर सकते हैं, लेकिन वह ऐसा कर नहीं रहे हैं। वजह, उन्हें तो जनता को यही दिखाना है कि उन्हें काम करने ही नहीं दिया जा रहा है।

5. क्या पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से समस्याएं सुलझ सकती हैं?

– बिल्कुल नहीं। पहली बात तो सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है। फिर भी सभी राजनीतिक दल और नेता यह मांग उठाते रहे हैं, मांग करने में कोई हर्ज भी नहीं है, लेकिन कड़वी सच्चाई से मुंह नहीं फेरना चाहिए। वैसे, आप सरकार ने तो अपने आचरण से पूर्ण राज्य मिलने की संभावना को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। अब दिल्ली को कभी पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा। भले केंद्र में सरकार किसी भी दल की बन जाए, इस मांग को कोई भी दल स्वीकार नहीं करेगा।

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