जम्मू कश्मीरप्रदेश

देश पर कुर्बान होने के जज्बे काे बल दे रही कारगिल की चोटियां

वर्ष 1999 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारतीय सेना की शानदार जीत की प्रतीक कारगिल की चोटियां देशभक्ति की भावना को बल दे रही हैं। जम्मू कश्मीर में देशविरोधी तत्वों से लड़ रही सेना इन चोटियों पर तिरंगा फहराने वाले अपने सौनिकों की कुर्बानियाें से प्रेरणा लेती है तो पर्यटक सेना की वीरता के कायल हो जाते हैं।

द्रास वार मेमोरियल सेना के उन 527 वीरों को समर्पित है जिन्होंने कारगिल की चोटियों पर कब्जा करने वाली पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए सीने पर गोलियां खाकर मातृभूमि को अपने खून से सींच दिया था।

कारगिल विजय दिवस की तैयारियों के बीच द्रास में देश के विभिन्न हिस्सों से आए पर्यटक कारगिल में लड़े गए युद्ध की यादाें को ताजा कर भारतीय सेना की बहादुरी को महसूस कर रहे हैं। छब्बीस जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाने की तैयारियों के बीच इन दिनों द्रास वार मेमोरियल में पर्यटक उमड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध में शहीदों की याद में दो दिवसीय कार्यक्रम 25 जुलाई से शुरू हो रहा है।

कारगिल में उन्नीस वर्ष पहले लड़े गए युद्ध में सेना के ताेपखोन ने दुश्मन को परास्त कर जीत की बुनियाद तो पैदल सेना, इन्फैंटरी के सटीक प्रहारों ने चोटियों पर बैठे दुश्मन के पांव तले से जमीन निकल गई। इस युद्ध में सेना की असाधारण बहादुरी के सबूत कारगिल वार मेमोरियल में शहीदों का नमन करने के लिए आने वालों युवाओं में फौजी बनने का जज्बा पैदा करते हैं।

भारतीय सेना के जवानों ने कारगिल की दुर्गम चोटियां पर दुश्मन को करारी शिकस्त दी थी। मेमोरियल में प्रदर्शित एतिहासिक फोटो व दुश्मन से बरामद गोला, बारूद, हथियार पाकिस्तानी करंसी व अन्य साजो सामान उन हालात का बयान करता है जिसमें सेना के वीरों ने कारगिल की चोटियाें से दुश्मन को आजाद करवाया था। दुश्मन से बरामद बंदूके, उसकी ओर से दागे गए बम गोलों के साथ शहीद होने से पहले सैनिकों के हंसते फोटो व युद्ध के दौरान सैनिकों तक रसद पहुंचाने के लिए सप्लाई कोर की जद्दाेजहद भी पर्यटकाें का आकिर्षत करती है।

कारगिल के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए 527 जवानों, अधिकारियों में से 71 जम्मू कश्मीर से थे। जीत सुनिश्चित करने के लिए सेना की आर्टिलरी ने भी कीमत चुकाई। युद्ध के मैदान में उसके तीन अधिकारी व 32 जवानों ने शहादत पाई। अलबत्ता जान देने से पहले उन्होंने दुश्मन के कई गुना अधिक अधिकारियों व जवानों को मार गिराया। अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान ने युद्ध में 69 अधिकारी व 772 जवान खोए। इनमें से अधिकतर उसकी नॉदर्न लाइट इन्फैंटरी के थे।

कारगिल में शहीद होने वाले वीरों के फोटो के साथ उन हथियारों को भी प्रदर्शित किया गया है जिन्होंने युद्ध में पासा पलट दिया था। इनमें मुख्य बोफाेर्स गन है। कारगिल के द्रास में सेना की बहादुरी को महसूस कर लाैटी बंगलूरू की मिनौती सिंह ने जागरण को बताया कि यह बयां करना मुश्किल है कि वहां कैसे महसूस होता है। युद्ध के मैदान के निकट सेना की कुर्बानियों के सबूत देखकर सबकी आंखे भर आना स्वाभिक है। उन्होंने बताया कि युवा विशेषतौर पर प्रभावित होते हैं व ऐसे में सेना के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है।

कारगिल में दुश्मन पर मौत बनकर बरसी बोफोर्स

कारगिल के युद्ध में सेना की आर्टिलरी की बोफोर्स गन दुश्मन पर मौत बनकर बरसी दी। दुश्मन काे गहरा आघात देने वाली यह तोप द्रास वार मेमोरियल की शान है। कारगिल विजय दिवस के अवसर पर द्रास वार मेमोरियल में बुधवार से दो दिवसीय कार्यक्रम शुरू होगा।

बोफोर्स गन ने कारगिल युद्ध की जीत में अहम भूमिका निभाई। इस 155 एमएम की एफएच-77 बी गन ने दुश्मन पर सटीक प्रहार कर उसकी कमर तोड़ दी। इसने तीस किलोमीटर दूर तक मार कर दुश्मन को आघात पहुंचाया। तोपों में दुश्मन पर इतनी आग बरसाई कि आर्टिलरी की 18 तोपों की की बैरल का आयु युद्ध के 25 दिनों में ही खत्म हो गई। ऐसे में नई तोपें लानी पड़ी। दुश्मन पर आर्टिलरी के सटीक प्रहारों के कारण वह आगे चल रही हमारी इन्फैंटरी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सका। बहादुरी के लिए थलसेना अध्यक्ष ने इन्फैंटरी की 11 रेजीमेंटों के साथ आर्टिलरी की तीन रेजीमेंटों, 141 फील्ड रेजीमेंट, 197 फील्ड रेजीमेंट व 108 फील्ड रेजीमेंट को वीरता के लिए सम्मानित किया था। दुश्मन की कमर तोड़ने के लिए आर्टिलरी की तोपें लगातार बरसी व युद्ध के दौरान उसकी रेजीमेंटों ने करीब अढ़ाई लाख शेल, बम व रॉकेट दाग कर गहरा आघात पहुंचाया। आर्टिलरी की 300 तोपों, मोर्टार व एमबीआरएल ने हर रोज औसतन पांच हजार शले, बम व रॉकेट दागे।

जिस दिन टाइगर हिल को अपने कब्जे में लिया गया, उस दिन आर्टिलरी ने नौ हजार शेल दाग कर दुश्मन को हिला दिया। जवानों ने कई रातें सोए बिना सत्रह दिन लगातार हर मिनट एक फायर कर यह साबित कर दिया कि बात जब देश की हो तो कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर सकता। दूसरे विश्व युद्ध के बाद कभी भी इस स्तर की गोलाबारी नहीं हुई थी।  

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