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लालजी टंडन बनेंगे बिहार के राज्यपाल, जानिए मायावती से उनका क्या है संबंध…

बिहार के नए राज्यपाल बनाए गए लालजी टंडन मूलत: उत्तर प्रदेश के लखनऊ जनपद के रहने वाले हैं। वह उत्तर प्रदेश सरकार में कई बार कैबिनेट मंत्री व विधायक रहे हैं। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता है।

दरअसल, अटल जी के अपनी संसदीय सीट लखनऊ को छोडऩे के बाद पार्टी ने उन्हें उतारा था और वह 15वीं लोकसभा में निर्वाचित होकर 2009 में पहली बार संसद पहुंचे थे। उनके बड़े बेटे आशुतोष टंडन वर्तमान में यूपी सरकार में तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा के कैबिनेट मंत्री हैं, लेकिन लालजी टंडन पिछले काफी समय से किसी पद पर नहीं थे। 

12 अप्रैल 1935 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मे 83 वर्षीय लालजी टंडन के परिवार में उनकी पत्नी कृष्णा टंडन व तीन पुत्र व दो नाती व पोते हैं। बड़े बेटे लखनऊ (पूर्वी) सीट से 2017 का विधानसभा चुनाव जीतकर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनके अलावा दोनों भाई अपना व्यवसाय करते हैं। 

मायावती से बंधवाते थे राखी

लालजी टंडन बसपा प्रमुख मायावती को अपनी बहन मानते रहे हैं। इसी कारण वह पिछले कई साल से उनसे राखी बंधवाते थे। एक बार इसको लेकर काफी चर्चा हुई थी और विपक्ष ने तंज कसा था तो स्वयं उन्होंने मायावती को अपनी बहन बताया था। मायावती भी उन्हें अपना भाई मानती रही हैं। पार्टी भले दोनों की अलग-अलग रही लेकिन दोनों के रिश्ते में कभी खटास नहीं आई। 

वर्षों से पार्टी से जुड़े रहे हैं टंडन 

पहली बार किसी राज्य के राज्यपाल बने लालजी टंडन भाजपा से वर्षों से जुड़े रहे हैं। वह उत्तर प्रदेश से दो बार (1978-84) विधान परिषद सदस्य और तीन बार (1990-96) विधानसभा सदस्य रहे हैं।

लालजी टंडन उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह व राजनाथ सिंह की सरकार में विभिन्न विभागों के कैबिनेट मंत्री थे और बसपा-भाजपा गठजोड़ से बनी मायावती सरकार में वह शहरी विकास मंत्री थे। इसके अलावा वह 2003 से 2007 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं। 

खुद अटलजी ने घोषित किया था अपना उत्तराधिकारी 

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव लडऩे से मना कर दिया था और सक्रिय राजनीति से लगभग संन्यास ले लिया था तो लालजी टंडन को उनके उत्तराधिकारी के रूप में घोषित कर पार्टी ने उन्हें लखनऊ से उतारा था।

माना जाता है कि पार्टी ने अटलजी की इच्छा पर ही उन पर दांव लगाया था। इसके बाद वह अटलजी के नाम पर ही चुनाव लड़े और तत्समय कांग्रेस की उम्मीदवार रहीं रीता बहुगुणा जोशी (अब योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री) को हराकर पहली बार संसद पहुंचे थे

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