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सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, कहा- समलैंगिकता अपराध नहीं

समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में गुरुवार को कहा कि देश में सबको समानता का अधिकार है। समाज की सोच बदलने की जरूरत है। अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है। 

कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरानी सोच को बदलने की जरूरत है।  से चीजें नहीं चल सकती, हमें पुरानी धारणाओं को बदलना होगा। तय करेगी कि दो बालिगों के एकांत में सहमति से बनाए गए संबंध अपराध की श्रेणी में आएंगे कि नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि एलजीबीटी समुदाय को हर वो अधिकार प्राप्त है जो देश के किसी आम नागरिक को मिले हैं। हमें एक दूसरे के अधिकारों का आदर करना चाहिए। 

कोर्ट का फैसला आते ही एलजीबीटी समुदाय में खुशी लहर दौड़ गई है। चेन्नई, मुंबई और देश के कोने- कोने से एलजीबीटी समुदाय के लोगों में खुशी के मारे रोने लगे वहीं कुछ जगह पर लोग अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख पाए है।  

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए होमोसेक्सुएलिटी यानि समलैंगिकता को क्रिमिनल एक्ट बता चुका था जिसको दोबारा चुनौती देते हुए क्युरिटिव पिटिशन दाखिल की गई थी। बता दें कि कई वर्षों से समुदाय इसे अपराध की श्रेणी में रखे जाने का विरोध करता आ रहा था।  जिसपर आज सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मुहर लगा दी है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। 

दरअसल सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को कई याचिकाएं दाखिल करके चुनौती दी गई थी। जिसे देखते हुए नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चार महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू की थी, जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है। इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध बताया गया है। आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा। उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर जमानती है।

भारत में कैसे संज्ञान में आई धारा-377  
सबसे पहले साल 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा में अप्राकृतिक संबंध बनाने का मामला सामने आया, जिसके बाद पहली बार कानून बनाकर इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया। बाद में ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में बगरी (अप्राकृतिक संबंध) एक्ट बनाया गया और इसके तहत फांसी का प्रावधान किया गया। 1563 में क्वीन एलिजाबेथ-1 ने इसे फिर से लागू कराया। 1817 में बगरी एक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया और 1861 में डेथ पेनाल्टी का प्रावधान भी हटा दिया गया। 1861 में ही लॉर्ड मेकाले ने इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) ड्राफ्ट किया और उसी के तहत धारा-377 का प्रावधान किया गया।

क्या है LGBTQ समुदाय?
LGBTQ समुदाय के तहत लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंटर और क्वीयर आते हैं। एक अर्से से इस समुदाय की मांग है कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए। निजता का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस समुदाय ने अपनी मांगों को फिर से तेज कर दिया था।

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