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उत्तराखंड: 35 बच्चों का भविष्य संवारने में जुटी है यह 74 वर्षीय महिला, जाने पूरी खबर

74 वर्ष की उम्र में भी बीना जोशी का उत्साह कम नहीं हुआ है। यह बच्चों के प्रति लगाव ही है कि आज वो 35 जरूरतमंद बच्चों की ‘मां’ बनकर उनका भविष्य संवार रही हैं। इंदिरा नगर स्थित उनके घर का नाम है ‘आओ पढ़ें’ और वे घर के ऊपरी मंजिल पर बच्चों की कक्षाएं लगती हैं। 20 वर्षों से बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रही बीना जोशी को आज बच्चे मां कहकर पुकारते हैं। 

इंदिरा नगर निवासी बीना जोशी अमेरिका की हवाई यूनिवर्सिटी से लेकर लखनऊ की कॉल्विन तालुकदार कॉलेज समेत कई अन्य बड़े शिक्षण संस्थानों में सेवाएं दे चुकी हैं। बीना जोशी के पति भूषण कुमार जोशी कुमाऊं विश्वविद्यालय में कुलपति रह चुके हैं। 1998 में सेवानिवृत्त होने के बाद वो देहरादून में ही बस गए। यहां किराये के मकान में रहते हुए बीना जोशी ने दो गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देनी शुरू की। 

दो वर्ष बाद उन्होंने इंदिरा नगर में दो मंजिला भवन बनाया तो उनके सपनों ने रफ्तार पकड़नी शुरू की। आज बीना जोशी के घर के ऊपरी मंजिल पर बच्चों का स्कूल चलता है। वर्तमान में यहां 35 गरीब और जरूरतमंद बच्चे पढ़ते हैं। 

बेहतर शिक्षा का प्रयास

बीना बताती हैं कि बच्चे आधुनिक शिक्षा के दौर में पीछे न छूटे, इसके लिए उन्हें कंप्यूटर शिक्षा भी दी जा रही है। बच्चों की शिक्षा के लिए तीन प्रशिक्षित शिक्षिकाएं रखी गई हैं। इन्हें बेहतर वेतन भी दिया जाता है। बीना की मानें तो जब भी उन्हें समय मिलता है वो बच्चों को पढ़ाने का मौका नहीं छोड़ती। 

कम नहीं हुआ हौसला

बीना जोशी एक हाथ से काम करने में समर्थ नहीं हैं। चिकित्सकों ने उन्हें आराम की सलाह दी है, लेकिन वो बच्चों के साथ समय बिताना पसंद करती हैं। बच्चों की शिक्षा के लिए वो 12 हजार से ज्यादा प्रतिमाह खर्च वहन करती हैं। 

शिक्षा के साथ पौष्टिक आहार भी 

बीना जोशी बच्चों को उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा देती हैं। इसके साथ ही बीना बच्चों के खान-पान पर भी विशेष जोर देती हैं। उनकी कक्षा खत्म होने पर उन्हें दूध, रस्क और फल जैसे कई अन्य पौष्टिक आहार भी दिया जाता है। माह में एक बार बच्चों को विशेष दावत भी जाती है।   

मसाले, बड़ियां बनाकर जुटाती हैं पैसे 

खास बात यह है कि इस नेक काम में आने वाला खर्च बीना जोशी सीमित संसाधनों के दम पर मेहनत से करती हैं। इसके लिए बीना जोशी शुद्ध मसाले, दालों की बड़ियां, चिप्स, अचार, आंवले का मुरब्बा, हल्दी तैयार करती हैं और इन्हें बेचकर मिलने वाले पैसों से पाठशाला चलाती हैं। पाठशाला में महीने में दो शिक्षकों व स्टाफ के वेतन समेत करीब 20 हजार से अधिक का खर्चा आता है। 

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