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वकीलों को नियंत्रित करने वाले नियम सुप्रीम कोर्ट से निरस्त

मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) द्वारा वकीलों को नियंत्रण/अनुशासन में रखने के लिए बनाए गए तमाम नियमों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और विनीत शरण की पीठ ने सोमवार को दिए फैसले में कहा कि यह नियम उचित नहीं हैं और हाईकोर्ट को ऐसे नियम बनाने का अधिकार नहीं है। नियमों में कहा गया था कि जजों को अपशब्द कहने, डराने या धमकाने, बेबुनियाद अफवाहें फैलाने तथा शराब पीकर कोर्ट में पेश होने पर उन्हें प्रैक्टिस से हमेशा के लिए बाहर किया जा सकता है।

वकीलों को इन आरोपों पर प्रैक्टिस से बाहर करने का अधिकार निचली अदालतों को भी दिया गया था। इन नियमों में दोषी पाए जाने पर वकील को एक निश्चित समय के लिए या हमेशा के लिए अदालतों में पेश होने से रोकने को प्रावधान किया गया था।

गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने ये नियम/ प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के वकील आर.के. आनंद बनाम रजिस्ट्रार दिल्ली हाईकोर्ट- 2009 के फैसले के आलोक में 2016 में बनाए थे। हाईकोर्ट के जजों की कमेटी द्वारा बनाए गए इन नियमों को एडवोकेट ऐक्ट- 1961 में जोड़ने के लिए संशोधन किया गया था और 20 मई 2016 को इन्हें अधिसूचित कर दिया गया था। इन नियमों के अनुसार, वकीलों को प्रैक्टिस से रोक जा सकता था यदि-

  • वकील जजों के नाम पर पैसे या उसे प्रभावित करने के लिए पैसे लेते पकड़ा जाए।
  • वकील कोर्ट के रिकार्ड या आदेश से छेड़छाड़ करे।
  • वकील जजों को धमकाए और उन्हें गाली दे या न्यायिक अधिकारियों को गाली दे।
  • वकील जज  के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाए, आरोप लगाए या याचिका प्रसारित करे।
  • वकील कोर्ट हाल के अंदर प्रदर्शन करे जुलूस निकाले या घेराव करे या तख्तियां लेकर घूमे।
  • वकील जो शराब के नशे में कोर्ट में आए और जज के सामने पेश हो।
  • इन नियमों को एडवोकेट आर. मुथुकृष्णन ने सुप्रीम कार्ट में चुनौती दी थी।

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