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दिल्ली HC की अहम टिप्पणी, सरकारी योजना नहीं संचालित कर सकते विधायक

वृद्धावस्था व विधवा पेंशन को लेकर अधिसूचना के खिलाफ दायर चुनौती याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार के जवाब से असंतुष्टि जाहिर की। मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ ने कहा कि सरकारी योजना को सरकार को ही लागू करना चाहिए। इसे किसी विधायक, राजनेता या व्यक्तिगत हाथों में नहीं दिया जा सकता। मुख्य पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली सरकार को अपने फैसले पर विचार करने का निर्देश दिया।

आया नगर से कांग्रेस पार्षद वेद पाल द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर दिल्ली सरकार के स्टैं¨डग काउंसल जवाहर राजा ने दलील दी कि पूर्व में चल रही व्यवस्था के माध्यम से फर्जी आवेदन कर पेंशन लेने की शिकायत मिल रही थी। इस पर रोक लगाने के लिए अक्टूबर 2018 में सिर्फ विधायक के माध्यम से आवेदन लेने की प्रक्रिया को शुरू किया गया।

इस पर मुख्य पीठ ने कहा कि विधायक एक जनप्रतिनिधि है। वह सरकारी विभाग नहीं है। मुख्य पीठ ने दलील पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसकी क्या गारंटी है कि विधायक के स्तर से होनी वाली आवेदन प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा नहीं होगा। मुख्य पीठ ने कहा कि अगर सरकारी व्यवस्था में खामी है तो इसे दूर करने के लिए प्रयास करना चाहिए न की किसी विधायक या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से। मुख्य पीठ ने कहा कि अगर हर विधानसभा सिर्फ 500 पेंशन धारक ही चुने जाने हैं तो फिर पहले आओ पहले पाओ की नीति की निष्पक्ष निगरानी के साथ चयन कैसे होगा। पीठ ने कहा यह सरकारी योजना है और इसे सरकारी स्तर पर ही लागू किया जाना चाहिए।

बता दें कि याचिकाकर्ता वेद पाल ने दिल्ली सरकार द्वारा अक्टूबर 2018 को जारी की गई अधिसूचना को चुनौती दी है। दिल्ली सरकार ने अधिसूचना जारी कर वृद्धावस्था व विधवा पेंशन को लेकर वर्ष 2016 के दिल्ली सरकार के कैबिनेट के फैसले को पलट दिया था। इसके तहत वृद्धावस्था व पेंशन के लिए पार्षद, विधायक, सांसद के अलावा ई-डिस्ट्रिक के जरिये आवेदन करने का प्रावधान था।

अक्टूबर 2018 की अधिसूचना में अन्य प्रावधानों को समाप्त कर दिल्ली सरकार ने सिर्फ यह अधिकार विधायक को दे दिया था। इसके तहत अब आवेदनकर्ता को विधायक के घर जाना होगा। विधायक आवेदन को अपनी लॉग-इन आइडी से पास करेगा। इसके बाद विभागीय प्रक्रिया शुरू होगी। पूर्व में बीमार लोगों का आवेदन करने के लिए सरकारी विभाग घर या अस्पताल में जाकर संस्तुति करता था, जबकि अब विधायक के पास जाना ही होगा।

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