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खुद देख नहीं सकते, पर रोशन कर रहे दूसरों की जिंदगी

Abpbharat news-लखनऊ किसी की आंखों की रोशनी 10 साल की उम्र में चली जाए तो उसके लिए खुद जीना मुश्किल हो जाता है। नैशनल पीजी कॉलेज के असोसिएट प्रफेसर राकेश जैन इसके अपवाद हैं। बचपन में ही आंखों की रोशनी जाने के बाद उन्होंने न सिर्फ यह मुकाम हासिल किया, बल्कि पिछले 14 साल से दूसरों की जिंदगी में भी रोशनी भरने में जुटे हैं। डॉ. राकेश को बचपन में ही ग्लूकोमा हो गया। 10 साल का होते-होते आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारे। ब्रेल लिपि में पढ़ाई शुरू की। दिल्ली से स्कूलिंग के बाद साल 1981 में एलयू में बीए में दाखिला लिया। यहीं से एमए और पीएचडी की। फिर साल 1996 में नैशनल कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक के तौर पर नौकरी शुरू की। साल 1999 में पहली बार कॉलेज में ऐडमिशन करवाने का जिम्मा मिला। 10 साल यह जिम्मा बखूबी निभाया, जिसके बाद परीक्षा नियंत्रक का कार्यभार भी मिल गया। इसके बाद उन्होंने ऑनलाइन इंटरनल एग्जाम से लेकर सेमेस्टर प्रणाली जैसी कई नई व्यवस्थाएं लागू कीं, जिससे नेशनल पीजी कॉलेज की प्रतिष्ठा और बढ़ गई।

डॉ. राकेश के मुताबिक, दृष्टिबाधितों के लिए आज भी पढ़ाई के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। इसी कारण साल 2005 में ‘रिहैबिलिटेशन सोसायटी ऑफ दि विजुअली इंपियर्डट’ शुरू की। इसके तहत दृष्टिबाधित छात्रों को पठन सामग्री, ब्रेल लिपि की किताबें, ऑडियो स्टडी मटीरियल मुफ्त में मुहैया करवाना शुरू किया। वह दृष्टिबाधितों को पढ़ाने के लिए टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम भी करवाते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा शिक्षक तैयार किए जा सकें। वह ये सारे काम बिना सरकारी मदद के कर रहे हैं।

मुगल गार्डन में भी मेहनत की गूंज

डॉ. राकेश की मेहनत की गूंज मुगल गार्डन में भी सुनाई देती है। साल 2003 में उन्हें एनबीआरआई के जरिए राष्ट्रपति भवन में दृष्टिबाधितों के लिए टेक्टाइल गार्डन डिजाइन करने का जिम्मा मिला। इसमें दृष्टिबाधितों के लिए विशेष पौधे लगाए गए और हर पौधे के पास ब्रेल लिपि में उसका परिचय लिखा गया। इसके साथ एक ऑडियो सेंसर भी लगाया गया, जिसे छूते ही पौधे की जानकारी स्पीकर के जरिए सुनाई देती है।

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