पटना। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से 40 लाख बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम बाहर कर दिए जाएंगे। यह मामला 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में भी प्रमुख चुनावी मुद्दा बनेगा। सीमांचल के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया और सुपौल सहित प्रदेश की एक दर्जन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह प्रमुख मुद्दा होगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इस मुद्दे को अपने पक्ष में करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी इसके संकेत दे दिए हैं।
बिहार के लिए नया नहीं मामला
असम के मंगलदोई संसदीय क्षेत्र में 1979 में हुए उपचुनाव में महज दो साल के दरम्यान 70 हजार मुस्लिम मतदाता बढऩे के बाद पहली बार देश में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला प्रकाश में आया था, लेकिन बिहार के लिए भी यह कोई नया मुद्दा नहीं है। 1980 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक बालाजी देवरस बिहार दौरे पर आए थे। तब समस्तीपुर की सभा में पूर्णिया एवं किशनगंज के स्वयंसेवकों ने उन्हें इसकी जानकारी दी थी।
सुशील मोदी ने किया प्रदर्शन, लिखी पुस्तक
इसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महामंत्री की हैसियत से सुशील कुमार मोदी ने सीमांचल के जिलों का सघन दौरा किया था। उन्होंने 1983 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के सामने जजेज फील्ड और इसके कुछ दिनों बाद पूर्णिया में बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व भी किया था। तब मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने इस पर-‘क्या बिहार भी असम बनेगा’ पुस्तक भी लिखी थी।
एमएलसी हरेंद्र प्रताप ने भी उठाई समस्या
इसके बाद पूर्व विधान पार्षद और भाजपा नेता हरेंद्र प्रताप ने भी सीमांचल के इलाके में 1961 से लेकर 1991 की जनगणना के आंकड़ों के आधार बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को लेकर ‘बिहार पर मंडराता खतरा’ नाम से किताब लिखी, जिसका 2006 में विमोचन करने भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष रामनाथ सिंह पटना आए थे।
हर चुनाव में रहा भाजपा का मुद्दा
1985 के बाद हर चुनाव बिहार में भाजपा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला एक मुद्दा रहा है। इसी के बल पर पार्टी को इस इलाके में हर चुनाव में सफलता भी मिलती रही है। कटिहार लोकसभा सीट से भाजपा के निखिल चौधरी के 1999, 2004 और 2009 में लगातार चुनाव जीतने, पूर्णियां 1998 में भाजपा के जयकृष्ण मंडल और 2004 और 2009 में उदय सिंह की जीत तथा अररिया में 98 में रामजी ऋषिदेव, 2004 में सुखदेव पासवान और 2009 में भाजपा के प्रदीप सिंह की जीत के पीछे कहीं न कहीं यह मुद्दा भी कारण रहा है। पार्टी नेताओं की राय है कि इस इलाके में मुस्लिम जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि का प्रमुख कारण बांग्लादेशी घुसपैठ है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या केवल असम तक सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल और बिहार भी इससे अछूते नहीं हैं। इसे जाति और धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।
आबादी पर घुसपैठ का इफेक्ट (राष्ट्रीय स्तर पर)
1991 की जनगणना : हिन्दू आबादी 82.77 प्रतिशत, मुस्लिम आबादी 11.02 प्रतिशत
2011 की जनगणना : हिन्दू आबादी 79.79 प्रतिशत, मुस्लिम आबादी 14.22 प्रतिशत
(नोट: मुस्लिम आबादी की वृद्धि 3.02 प्रतिशत, हिन्दू आबादी उसी अनुपात में घटी)
आबादी पर घुसपैठ का इफेक्ट (बिहार स्तर पर)
– अररिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.52 प्रतिशत, 2011 में मुस्लिम आबादी 42.94 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि।
– कटिहार में 1971 में मुस्लिम आबादी 36.58 प्रतिशत, 2011 में बढ़कर 44.46 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में वृद्धि 7.88 प्रतिशत।
– पूर्णिया में 1971 में मुस्लिम आबादी 31.93 प्रतिशत, 2011 में बढ़कर 38.46 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी में वृद्धि 6.53 प्रतिशत।