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धर्म/अध्यात्म

अमृत की वर्षा : शरद पूर्णिमा पर चांद की रोशनी से पूरी पृथ्वी जगमगा जाती है

इस वर्ष शरद पूर्णिमा 30 अक्तूबर को मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा आती है। हिंदू धर्म में हर महीने की अमावस्या और पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है, लेकिन शरद पूर्णिमा बहुत ही खास मानी जाती है।

इस दिन चांद की रोशनी से पूरी पृथ्वी जगमगा जाती है और चंंद की रोशनी को रूप में अमृत की वर्षा होती है। अलग-अलग जगहों पर शरद पूर्णिमा को कई नामों से जाना जाता है जैसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कोमुदी व्रत आदि। शरद पूर्णिमा के दिन से शरद ऋतु का आगमन हो जाता है।

साल भर में आने वाली सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष रूप से इंतजार रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर पूरी रात चांद की रोशनी में आसमान के नीचे रखा जाता है फिर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं।

मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं। वहीं ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा शुभ फल नहीं देते हैं उन्हें खीर का सेवन जरूर करना चाहिए। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा देवी लक्ष्मी का आगमन होता है इस कारण से देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।

शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है।

इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।

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