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…जब लखनऊ की सड़कों पर रात में अकेले ही टहलते नजर आए अटलजी
लखनऊ के अटलजी, अटलजी का लखनऊ। बात एक ही है। उनके चाहने वालों के लिए कहा जाए तो लखनऊ को लेकर या शहरवालों, पार्टीवालों के लिए जितना अपनापन उनमें था, उतनी ही सरलता विरोधियों के लिए भी अटलजी के मन में थी। रात के 11 बजे अमीनाबाद की सड़कों पर बिना सुरक्षा के तामझाम के अकेले टहलते चले जाना या विरोधी रहे उम्मीदवार की दुनिया के मंच पर तारीफ करना, उन्हीं के बस की बात थी।
आधे घंटे तक गाड़ी के बोनट पर खड़े होकर देते रहे भाषण
1991 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ की जनसभाओं की जिम्मेदारी संभालते रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र तिवारी बताते हैं कि जितना बड़ा कद, उतना ही आसान उनका व्यक्तित्व। 91 में पहली बार लखनऊ से चुनाव लड़ने आए तो यहां से उनका चुनाव लड़ने का खास मन नहीं था, लेकिन 4-5 घंटों की लगातार वाहन यात्रा कर उन्होंने नए बस रहे लखनऊ राजाजीपुरम, इंदिरानगर, अलीगंज और थोड़ा बहुत गोमतीनगर देखा। इसके बाद वह तुरंत तैयार हो गए।
1991 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ की जनसभाओं की जिम्मेदारी संभालते रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र तिवारी बताते हैं कि जितना बड़ा कद, उतना ही आसान उनका व्यक्तित्व। 91 में पहली बार लखनऊ से चुनाव लड़ने आए तो यहां से उनका चुनाव लड़ने का खास मन नहीं था, लेकिन 4-5 घंटों की लगातार वाहन यात्रा कर उन्होंने नए बस रहे लखनऊ राजाजीपुरम, इंदिरानगर, अलीगंज और थोड़ा बहुत गोमतीनगर देखा। इसके बाद वह तुरंत तैयार हो गए।
जिम्मेदारी हम सब की टीम ने उठाई, जो उन्हें चुनाव लड़ने में मदद कर रहे थे। वह जब लखनऊ आते तो वीआईपी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में ही रुकते। उन दिनों भाजपा युवा मोर्चा को दूरदर्शन कार्यालय के सामने कोई प्रदर्शन करना था, हम अति उत्साह में उन्हें बुलाने का आग्रह कर बैठे तो वह भी चल पड़े, कोई खास इंतजाम नहीं था, फिर भी गाड़ी पर लगे 4 लाउडस्पीकर देख उन्होंने बोनट पर चढ़ने की तैयारी की।
मेरे हाथ का सहार लेकर वह चढ़ गए और 25-30 मिनट तक बोलते रहे। वह दिन भी याद है जब लाप्लास में कमरा आवंटित होने के बाद वह रात 11 बजे के आसपास हाथ में धोती पकड़े अमीनाबाद में चले आ रहे थे अकेले ही, देवी जागरण देख रहे हम लोगों को खोजते हुये। इतनी आसान शख्सियत का आदमी आज कहीं नहीं दिख सकता।