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आज कामिका एकादशी व्रत जाने इससे जुडी पौराणिक कथा। ….

आज कामिका एकादशी का व्रत है. कामिका एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनके लिए व्रत रखा जाता है. इस समय चातुर्मास चल रहा है और भगवान विष्णु योग निद्रा में हैं. हालांकि इस दौरान पूजा की मनाही नहीं होती है.

कामिका एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है. कामिका एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद जरूर पढ़ें ये कथा और आरती.

एक पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक गांव में पहलवान रहता था. पहलवान नेक दिल का आदमी था लेकिन उसका स्वभाव बहुत क्रोध करने वाला था. इसी वजह से आए दिन उससे किसी न किसी की बहस हो जाती थी.

एक दिन पहलवान ने एक ब्राह्मण से झगड़ा कर लिया. उसके ऊपर क्रोध इतना हावी हो गया कि उसने ब्राह्मण की हत्या कर दी, जिसकी वजह से उस पर ब्राह्मण हत्या का दोष लग गया. इस दोष से बचने और पश्चाताप के लिए वह ब्राह्मण के दाह संस्कार में शामिल होने गया.

लेकिन पंडितों ने उसे वहां से भगा दिया. पंडितों ने ब्रह्माण की हत्या का दोषी मानकर पहलवान का समाजिक बहिष्कार कर दिया. ब्राह्मणों ने पहलवान के यहां सभी धार्मिक कार्य करने से मना कर दिया.

सामाजिक बहिष्कार से परेशान होकर पहलवान ने एक साधु से पूछा कि वह कैसे इस दोष से मुक्त हो सकता है. इस पाप से बचने का उपाय जानना चाहा. साधु ने पहलवान को कामिका एकादशी का व्रत करने की सलाह दी.

साधु के कहने पर पहलवान ने कामिका एकादशी व्रत का विधि विधान से पालन किया. एक दिन रात पहलवान भगवान विष्णु जी मूर्ति के पास सो रहा था. उसे नींद में भगवान विष्णु के दर्शन हुए और उसने सपने में देखा कि भगवान ने उसे ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्त कर दिया है. उसी दिन से कामिका एकादशी व्रत रखने का प्रचलन हो गया.

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥

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