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सुप्रीम कोर्ट अयोध्या की राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि को तीन भागों में बांटने वाले 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल एवं न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ इस मामले में दायर अपीलों पर सुनवाई करेगी. शीर्ष अदालत ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इंकार कर दिया था जिसमें कहा गया था कि ‘मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं’ है. यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था.

राम मंदिर निर्माण के लिए तराशे गए पत्थरों पर भिड़े
उधर, अयोध्या राम मंदिर निर्माण कार्यशाला में पत्थर तराशने का कार्य सत्र 1990 से अबतक लगभग एक लाख घन फुट तराशे जा चुके हैं और निरंतर चल रहा है. विहिप की प्रान्तीय प्रवक्ता शरद शर्मा ने बताया की मंदिर निर्माण के लिए साठ से 65 प्रतिशत तक कार्य हो चुका हैं. पूरे मंदिर निर्माण के लिये एक लाख 75 हजार घन फुट पत्थर का लगना है. पत्थरों का आना लगा रहता है. यहां पर दूर प्रदेश से श्रद्धालु आकर दर्शन करते हैं. राम मंदिर निर्माण के लिए अपनी भावना को प्रकट करते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त किया है. 

अयोध्या निर्मोही अखाड़ा के पक्षकार ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा अपना पक्ष रखती है और विश्व हिंदू परिषद के इन तराशे हुए पत्थरों का हम इस्तेमाल नहीं करेंगे. हमारे पक्ष में फैसला आएगा तो हम राम जी की कृपा से अपनी व्यवस्था हम स्वयं करेंगे.

दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पीठ ने 2:1 के बहुमत से सुनाई था फैसला
शीर्ष अदालत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था. 

दूसरी ओर, खंडपीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने दोनों न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुये कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिये विस्तार से विचार की आवश्यकता है. 

तीनों पक्षों को बराबर-बराबर जमीन देने का आया था फैसला
अदालत ने 27 सितंबर को कहा था कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ 29 अक्टूबर को करेगी. मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग है या नहीं, यह मुद्दा उस वक्त उठा जब तीन न्यायाधीशों की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये.

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