जम्मू कश्मीर

गुलाबी चोंच वाले सिलेटी सवन से गुलजार हुआ घराना

भारत-पाक सीमा पर स्थित घराना वेटलैंड में पहुंचे प्रवासी पक्षी सिलेटी सवन के परिवार ने पर्यावरणविदों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसकी वजह है कि इस बार इस प्रजाति के पक्षियों की संख्या बढ़कर 15 तक पहुंच गई है। पिछले सालों में इनकी संख्या एक से छह तक ही थी। अब हुई बढ़ोतरी से इस प्रजाति के और पक्षी आने की भी प्रबल संभावना है।

यह ग्रुप घराना वेटलैंड में राजहंसों के साथ बैठ रहा है और अपनी रंगत से सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। राजहंसों से मिलते जुलते यह पक्षी अपनी गुलाबी चोंच से आसानी से पहचाने जाते हैं। यह पक्षी बहुत ही नायाब हैं और घराना में बड़ी मुश्किल से दिखते रहे हैं। मगर अब इनका बड़ा परिवार घराना के तालाब में अठखेलियां करता नजर आता है।

पर्यावरणविद् बृज मोहन का कहना है कि घराना आम वेटलैंड नहीं, बल्कि नायाब है। यहां एक छोटे से तालाब में अनेक किस्म के प्रवासी पक्षी आकर बसेरा बनाते हैं। जम्मू से आई सुनीता बंगोत्रा ने कहा कि दूर से सभी पक्षी एक जैसे लगे। मगर जब दूरबीन से देखा तो पता चला कि राजहंसों में कुछ पक्षी एकदम अलग हैं। इनकी चोंच गुलाबी और सिर के पीछे काली धारियां नहीं थी, जैसा कि राजहंस में होती है। वहीं, घराना में ब्लैक नेक्ड इबीज व वूली नेक्ड स्टार्क प्रजाति के भी कुछ पक्षी नजर आ रहे हैं। इनको देखकर पर्यटक उत्साहित हैं।

पीसीसीएफ ने किया वेटलैंड का दौरा

प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) सुरेश चुग ने घराना वेटलैंड का दौरा किया और यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की जानकारी ली। उन्होंने वन्यजीव संरक्षण विभाग के अधिकारियों से भी वेटलैंड के वर्तमान हालात पर चर्चा की। सर्दियां बढ़ते ही प्रवासी पक्षी घराना क्षेत्र की ओर अपना रुख कर देते हैं और दिसंबर में यहां पर पक्षियों का मेला सा लग जाता है। फिर यह पक्षी अप्रैल तक यहीं पर बने रहते हैं।

क्षेत्रीय वन्यजीव वार्डन जम्मू ताहिर शाल ने पीसीसीएफ को घराना में आने वाले प्रवासी पक्षी प्रजातियों के विवरण के बारे में जानकारी दी। विभाग द्वारा उठाए गए उपाय के बारे में भी बताया। घराना वेटलैंड रिजर्व क्षेत्र है और इंपोर्टेड बर्ड एरिया के रूप में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है।

उन्होंने बताया कि घराना में पक्षियों पर नजर रखने के लिए पहले भी रेडियो टेलिमीटर लगाए गए गए।बर्ड रिंगिंग की गई। इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाएंगे।

तीन दशक बाद भी जम्मू के वेटलैंड पक्षियों के लिए सुरक्षित नहीं हो पाए हैं। 1982 में सरकार ने जम्मू में करीब छह तराई क्षेत्रों को वेटलैंड का दर्जा दिया, इसके बावजूद तराई क्षेत्र की जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जा सका है। हालांकि वन्यजीव संरक्षण विभाग सारा कसूर राजस्व विभाग पर डाल रहा है, जिसने भूमि की निशानदेही कर जमीन को वन्यजीव संरक्षण विभाग के हवाले नहीं किया है। यही कारण है कि आज परगवाल, संग्राम, घराना, नंगा, कुकरेयाल, अब्दुलियां आदि तराई क्षेत्रों में अतिक्रमण हो रहा है और विभाग चाह कर भी कार्रवाई नहीं कर पा रहा।

हालांकि घराना वेटलैंड को लेकर बरसों बाद हलचल हुई है और न्यायालय के दिशा निर्देश के बाद राजस्व विभाग ने पहल की है और जमीन की निशानदेही की है। विभाग के कागजों में इस वेटलैंड की जमीन 1500 कनाल है मगर हकीकत में 98 कनाल ही वेटलैंड बचा है। मगर अब इस वेटलैंड के सरंक्षण की उम्मीद जरूर बनी है। पक्षी प्रेमियों का कहना है कि जम्मू के सीमांत क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए बेहतरीन बसेरा हैं। 

वेटलैंड को लेकर विभाग नहीं है गंभीर

वन्यजीव संरक्षण विभाग के वार्डन का कहना है कि वेटलैंडों के संरक्षण के लिए विभाग अपनी प्रकिया में जुटा हुआ है। घराना को लेकर काफी काम आगे बढ़ा है। ऐसे ही हम दूसरे वेटलैंड क्षेत्रों को संरक्षित करने में लगे हुए हैं। परगवाल, संग्राम, घराना, नंगा, कुकरेयाल, अब्दुलियां तराई क्षेत्रों में अतिक्रमण को नहीं हटाया जा सका

ये नायाब पक्षी बनाते हैं बसेरा

जम्मू के तराई क्षेत्रों में कई नायब किस्म के पक्षी बसेरा बनाकर लोगों को चकित कर रहे हैं। सफेद बुज्जा (ब्लेक हेडड इबीज), व्हाइट फ्रंटेड गूज, सिलेटी सवन (ग्रे लाग गूज), लांग टेल्ड डक, चम्मच सू (स्पून बिल), जांघिल (पेंटिड स्ट्रोक ) सीमांत क्षेत्रों में नजर आए। दुनिया में सबसे ऊंचाई पर उड़ने के लिए माने जाने वाले राजहंस भी सीमांत इलाकों के तराई क्षेत्रों में उतर रहे हैं।

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