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पढ़िए- दिल्ली HC ने क्यों किया द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र…

सिख विरोधी दंगा मामले में हाई कोर्ट ने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए जांच एजेंसी पर गंभीर सवाल खड़े किए। अदालत ने दंगे को नरसंहार और मानवता के खिलाफ बताते हुए कहा कि इसके दोषियों के सामने कानून लाचार बना रहा। मामले में एफआइआर दर्ज करने से लेकर जांच में पुलिस पूरी तरह से विफल रही। केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआइ ने तमाम सबूत और गवाह पेश किए, जिसमें वारदात में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत अन्य दोषियों के शामिल होने की न सिर्फ दलील दी गई, बल्कि अभियोजन पक्ष ने उसे साबित भी किया। अापराधिक साजिश रचने में सज्जन की भूमिका से लेकर जांच में पुलिस की नाकामी पर अदालत ने टिप्पणी की।

अदालत ने कहा कि यह एक अप्रत्याशित मामला है, जिसमें भारी दबाव के चलते कांग्रेस नेता सज्जन कुमार के खिलाफ रिपोर्ट और बयान दर्ज करना नामुमकिन हो गया था। जिस मामले में रिपोर्ट दर्ज भी हुई, उसकी जांच या तो सही ढंग से नहीं की गई या फिर आरोप पत्र में तार्किक नतीजे में नहीं लाया गया।

अदालत ने कहा कि दिल्ली पुलिस दंगा शाखा ने मामले से जुड़े गवाहों के न तो बयान दर्ज किए और न ही सही जांच की। दंगाइयों ने दो तरह काम किया। एक ने पुरुष सिखों पर हमला किया और दूसरे ग्रुप ने उनके घरों को जलाया। राज नगर गुरुद्वारे पर किया गया हमला इसी का एक अंग था। पुलिस और दिल्ली पुलिस दंगा शाखा ने घटना में अपने पति व सास-ससुर को खोने वाली गवाह का कभी बयान ही दर्ज नहीं किया।

आपराधिक साजिश रचने में भी सज्जन की भूमिका

अदालत ने कहा कि एक नवंबर, 1984 की घटना आपराधिक साजिश का हिस्सा थी। 31 अक्टूबर को सिखों पर बंदूक, केरोसिन और अन्य हथियारों से हमला हुआ और यह बिना पूर्व योजना के संभव नहीं था। अदालत ने राजनगर निवासी गवाह का हवाला देते हुए कहा कि दंगाई बेखौफ सिखों को निशाना बना रहे थे और जान बचाने के लिए कई सिखों ने केश काट लिए थे। सुनवाई के दौरान सीबीआइ के वकील आरएस चीमा ने कहा था कि रिपोर्ट के अनुसार पुलिस लगातार क्षेत्र का निरीक्षण कर रही थी, लेकिन किसी ने थाने जाकर दंगा होने जैसी बात रिपोर्ट नहीं की। सिर्फ इतना जिक्र था कि कोई घटना हुई थी और पुलिस गुरुद्वारे पर गई थी। पीठ ने फैसले में माना कि दंगे की साजिश रची गई थी और यह साबित हुआ है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए नरसंहार का दिया हवाला

सिख विरोधी दंगे को लेकर हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक अलग तरीके का अप्रत्याशित मामला है और अदालतों को ऐसे मामलों को अलग दृष्टि से देखने की जरूरत है। पीठ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए नरसंहार के मामलों का भी हवाला दिया। अदालत ने द्वितीय विश्व युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय सेना प्राधिकरण ने इस तरह के मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया था। रोम इंटरनेशनल क्रिमनल कोर्ट ने भी हत्या एवं दुष्कर्म जैसे मामलों को मानवता के खिलाफ अपराध बताया है।

देशभर में कई जगहों पर हुआ था नरसंहार

अदालत ने फैसले में दिल्ली व पंजाब में हुए सिख विरोधी दंगों के साथ अन्य नरसंहार का भी जिक्र किया। अदालत ने कहा कि इसी तरह का नरसंहार 1993 में मुंबई में, 2002 में गुजरात, 2008 में ओडिशा और 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भी हुआ था, जो अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हुआ संगीन अपराध है। इस तरह के मामलों में राजनीतिक कलाकारों को कानून के रखवालों का ही संरक्षण रहता है। मानवता के खिलाफ अपराध या नरसंहार घरेलू अपराध का हिस्सा है। इसे तुरंत दुरुस्त करने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने कहा, सज्जन के खिलाफ या तो रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई और यदि कहीं हुई तो अंजाम तक नहीं पहुंची

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