उत्तराखंड

बाजार में छाए पहाड़ी ऊनी उत्पाद, विदेशों में भी बढ़ रही है इनकी मांग

उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाएं अब कृषि के साथ-साथ तकनीकी प्रशिक्षण हासिल कर स्वरोजगार की दिशा में भी कदम बढ़ा रही हैं। उनके तैयार किए गए तरह-तरह के ऊनी उत्पाद बाजार में अपनी खास पहचान बना रहे हैं। उच्च गुणवत्ता वाले इन उत्पादों की मांग देश के विभिन्न प्रदेशों के साथ ही विदेशों में भी बढ़ रही है। खासकर सदरी, जैकेट, शॉल, ऊनी कुर्ते, टोपी, मफलर, पीड (ऊनी कपड़ा), चुटका, थुलमा जैसे ऊनी वस्त्रों को तो लोग हाथों-हाथ उठा रहे हैं।

ऐसे तैयार की जाती है ऊन

स्वयं सहायता समूह हर्षिल, नीती, माणा आदि घाटियों में भेड़ पालन करने वालों से ऊन खरीदते हैं। यह ऊन मेरीनो, पश्मीना, एल्पाका, लैंप्स आदि प्रजाति की भेड़ों से तैयार किया जाता है। अंगोरा प्रजाति के खरगोश के फर से बनाया ऊन भी काफी गर्म होता है। महिलाएं मशीनों की सहायता से ऊन की कताई कर धागा तैयार करती हैं। हर महिला रोजाना लगभग एक किलो धागा तैयार कर लेती है। फिर इस धागे से मशीन व हाथों से वस्त्र और अन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं।

भांग-कंडाली के उत्पादों का जोर

भांग और कंडाली के रेशे से तैयार शॉल, मफलर और सदरी सभी को काफी लुभा रहे हैं। इनकी डिमांड विदेशों में भी काफी है। भांग के रेशे से तैयार मफलर 1200 से 1500 रुपये तक में बिक रहा है। वहीं, कंडाली से बनी सदरी की कीमत 2500 से 3000 रुपये तक है।

थुलमा और चुटका की गर्माहट 

उत्तराखंड खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग की श्रीनगर इकाई के शंकर सिंह रौथाण और डीपी मैठाणी बताते हैं कि भेड़ के ऊन से बना चुटका ओढ़ने में काफी गर्म होता है। इसे तैयार करने में करीब एक हफ्ते का समय लगता है। यह ज्यादातर हर्षिल में तैयार किया जाता है। छह किलो ऊन से करीब सात फीट लंबा और डेढ़ फीट चौड़ा चुटका तैयार किया जाता है। इसी तरह ओढ़ने-बिछाने के लिए थुलमा तैयार किया जाता है।

 

केदारनाथ आपदा पीडि़त परिवारों को मिला सहारा

2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद केदारघाटी के सैकड़ों परिवार रोजगार से वंचित हो गए थे। ऐसे में मंदाकिनी महिला बुनकर समिति ने उन्हें जागरूक कर प्रशिक्षित करना शुरू किया। वर्तमान में करीब 300 महिलाएं समिति से जुड़ी हुई हैं। समिति के संस्थापक डॉ. एसके बग्वाड़ी ने बताया कि महिलाओं के तैयार किए ऊनी उत्पाद इटली, डेनमार्क, फ्रांस, चीन, यूएसए, यूके आदि देशों में भी बिक रहे हैं। देश के अन्य राज्यों में भी इनकी डिमांड बढ़ी है। समिति को उत्तराखंड महिला एवं बाल विकास विभाग भी सहयोग कर रहा है।

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