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पढ़िए- एक फैसले से कैसे बदल गई हरियाणा की इस खूबसूरत लड़की की जिंदगी

यह कहानी एक बेहद सामान्य लड़की सिमरन की है जिसने तीन दिन पहले ही असाधारण कार्य करते हुए तमाम भौतिक सुख-सुविधाओं को एक झटके में दरकिनार कर वैराग्य का मार्ग चुन लिया। गन्नौर के हरीनगर की उन गलियों में उसके नाम की दिन-रात चर्चा हो रही है, जहां वह खेली-बढ़ी-पढ़ी। जिन गलियों में वह बालपन से लेकर किशोरावस्था तक रहीं, उन गलियों में एक सूनापन है। सब हैं, एक सिमरन नहीं है। गलियां सूनी हैं जो खोजती हैं अपनी सिमरन को…। वही सिमरन जो अब बन गई हैं साध्वी श्री गौतमी।

सिमरन का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उसकी जन्मस्थली मोहल्ला हरीनगर, गन्नौर है। 22 साल की उम्र में सिमरन ने जब वैराग्य अपनाते हुए जैन दीक्षा ग्रहण की तो उसके स्कूल से लेकर मोहल्ले तक के लोग चकित तो हुए, पर उन्हें गर्व भी हुआ। हां, लोगों को सहज यकीन नहीं हो रहा कि हमेशा लोगों से हंस कर मिलने वाली लड़की के मन में ईश्वर के प्रति ऐसी भक्ति उमड़ेगी कि वह इस सांसारिक मोह-माया को ही एक झटके में त्याग देगी।

सिमरन ने जीटी रोड स्थित सीसीएएस जैन सीनियर सैकेंडरी स्कूल से 12वीं पास की। फिर पुणे गईं जहां से उन्होंने बीएससी की पढ़ाई की। माता-पिता चाहते थे कि पढ़-लिख कर बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो तो वह उसका घर बसाएं लेकिन सिमरन ने वैराग्य अपनाने का फैसला कर लिया।

सिमरन के साध्वी गौतमी श्री बन जाने के बाद पड़ोसी, जानकार और सहेलियां गर्व महसूस कर रही हैं। उनका कहना है कि वैराग्य धारण करना आसान नहीं है। अब उनकी नजरों में सिमरन के प्रति आदर-सम्मान काफी बढ़ गया है।

पढ़ाई में सामान्य थी सिमरन

सीसीएएस जैन सीनियर सैकेंडरी स्कूल की प्राचार्य भूषण भाटिया ने बताया कि सिमरन साधारण लड़की थी। पढ़ाई में भी सामान्य थी, लेकिन स्कूल में कभी उसने नियम-कायदे से बाहर जाकर कोई काम नहीं किया। हमेशा संयम से ही रहती थी, जो उसे दूसरों से अलग करती थी।

धर्म में शुरू से थी आस्था

सिमरन की सहेली प्रीति ने कहा कि धर्म के प्रति सिमरन में शुरू से ही गहरी आस्था थी, लेकिन धर्म और समाजहित के लिए वह वैराग्य अपना लेगी, यह कभी नहीं सोचा था। यह बहुत साहस का काम है। हालांकि, वह अकसर अपनी बुआ जैन साध्वी महासती डॉ. मुक्ता के जैसी बनने की बात करती थी और उनसे काफी प्रेरित भी थी। शायद उसने मन ही मन में ठान रखा था कि वह अपनी बुआ के दिखाए मार्ग पर चलेगी। पूरी शिद्दत के साथ पढ़ाई पूरी करने के बाद अब उसने अपना जीवन धर्म को समर्पित कर दिया है। यह गर्व की बात है।

हंसने-खेलने वाली बच्ची दिखाएगी धर्म की राह

सिमरन के पड़ोसी और उनके वार्ड के पार्षद रामेश्वर दास बताते हैं कि इन्हीं गलियों में अकसर खेलती रहती थी। सिमरन दूसरे बच्चों की ही तरह थी, लेकिन हमेशा संयमित व सभी के प्रति आदर का भाव रखने वाली थी। उसने अपने व्यवहार से शायद ही कभी किसी को कष्ट पहुंचाया होगा।

यहां पर बता दें कि सांसारिक जीवन के वैभव को छोड़कर सोमवार को सोनीपत (हरियाणा) की 22 वर्षीय सिमरन जैन साध्वी बन गईं। जैन भगवती दीक्षा महोत्सव में गौतममुनिजी ने उन्हें नया नाम महासती श्री गौतमीजी दिया। इस अवसर पर केशलोचन सहित दीक्षा की विभिन्न विधियां हुई।

इससे पहले जब आयोजन स्थल पर दीक्षार्थी सिमरन जैन पहुंचीं तो उनके सामने इंदौर निवासी नाना तेजप्रकाश जौहरी खड़े थे। वह उनसे मिलीं और मुस्कुराते हुए कहा- नानू आज आखिरी बार मेरे साथ खेल लो। फिर नानू ने भी कंधे पर हाथ रखकर दीक्षार्थी के प्रति अपना स्नेह जताया। इसके बाद दीक्षा की विधि शुरू हुई, जो करीब दो घंटे चली। यहां दीक्षार्थी ने दीक्षा की अनुमति परिजन, समाज और साधु मंडल से ली। इसके बाद केशलोचन सहित विभिन्न दीक्षा की विधियां संपन्न हुईं।

इससे पहले वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक ट्रस्ट के तत्वावधान में सुबह सांसारिक परिधान में मुमुक्षु सिमरन का वरघोड़ा निकाला गया। इसमें बग्घी में सवार दीक्षार्थी वर्षीदान करती चल रही थीं। साथ बड़ी संख्या में समाजजन चल रहे थे।

बेटी का दीक्षा का इरादा पक्का

सिमरन के पिता अशोक गौड़ ने कहा कि मेरी दो बेटियां और दो बेटे हैं। एक बेटी मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। हमारा विचार था कि बेटी पढ़-लिख कर करियर बनाएगी और हम उसकी शादी करेंगे, लेकिन उसका दीक्षा का इरादा पक्का था। छोटी बेटी का रुझान भी इसी ओर है।

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