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कर्ज से परेशान होते भय्यू महाराज तो बुक नहीं कराते बीएमडब्ल्यू

कर्ज से परेशान होते तो एक महीने पहले ही भय्यू महाराज बीएमडब्ल्यू बुक नहीं कराते, न ही लाखों रुपए घर के नवीनीकरण पर खर्च करते। बीएमडब्ल्यू के लिए 23 लाख रुपए का भुगतान कर चुके थे और 40 लाख का लोन आईसीआईसीआई बैंक से कराया गया था। इसके लिए ही उन्होंने अपनी लक्जरी कार का सौदा भी 28 लाख में किया था। महाराज कोई भी गाड़ी पांच-छह साल से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते थे। ‘शिवनेरी” के नवीनीकरण के लिए भी एक करोड़ से ज्यादा खर्च कर चुके थे।

यह कहना है भय्यू महाराज के नजदीकियों का। उनका कहना है बेटी कुहू को विदेश में सेटल करने के लिए 10 लाख जैसी छोटी राशि के लिए कर्ज के दबाव में आत्महत्या करने की बात भी गले नहीं उतर रही है। पत्नी और बेटी का विवाद भी कुहू के विदेश जाने के बाद समाप्त होने वाला था। इन दोनों बिंदुओं के अलावा भी घटना के अन्य पक्ष की जांच की जाना चाहिए। अभी भी ऐसे कई लोग हैें जो रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं लेकिन उनके बयान नहीं हुए। उनका कहना है कि सद्गुरु दत्त पारमार्थिक ट्रस्ट पर भी कर्ज होने की बात निराधार है। ट्रस्ट पर कोई कर्ज नहीं है। हर साल ट्रस्ट द्वारा नए प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं। हाल ही में 28 लाख से जल संधारण का काम मराठवाड़ा में किया गया है। किसानों के लिए 15 लाख के बीज खरीदे गए हैं।

लाखों के उपहार दे जाते थे लोग

भय्यू महाराज रोलेक्स की घड़ियां, सोने की अंगूठी, महंगे रत्न पहनते थे। कई भक्त उन्हें महंगे उपहार देते थे। कई अपने आय में हिस्सेदार भी बनाते थे और हिस्से की राशि देकर चले जाते थे। ये उपहार अभी कहां है, इनका भी पता लगाया जाना चाहिए। किसी अन्य बिंदु को छिपाने के लिए आर्थिक समस्या को किसी साजिश के तहत तो सामने नहीं लाया जा रहा है।

महाराज से जुड़ने के बाद रईस हुए लोगों की संपत्ति की भी हो जांच

नजदीकी लोगों को कहना है कि ऐसे कुछ लोग हैं जो पिछले कुछ सालों में महाराज से जुड़ने के बाद रईस हुए हैं। उनकी संपत्ति की भी जांच होना चाहिए। इनमें लगाया गया न किसने और कहां से लगाया, इसका पता लगाया जाना चाहिए, इसमें किसकी हिस्सेदारी है। महाराज के अन्य ‘इन्वेस्टमेंट” की भी जांच होना चाहिए, जिसकी जानकारी परिवार को भी नहीं है।

घटना के समय मौजूद नहीं रहने वाले सेवादार से पूछताछ हो

महाराज के तीन ऐसे नजदीकी सेवादार हैं जो घटना के समय शहर में नहीं थे लेकिन उनसे अभी तक पूछताछ नहीं हुई है। है। ये हैं शरद देशमुख, शशि देशमुख व एक अन्य। इनके पिछले छह महीने की स्थितियों पर बयान लिए जाना चाहिए।

हर काम होता था प्लानिंग से, फिर क्यों नहीं बनाई वसीयत

संस्था से जुड़े लोग कहते हैं कि महाराज हर काम प्लानिंग से करते थे। हर प्रोजेक्ट का पूरा खाका कागज पर बनाते थे। रोज डायरी लिखते थे। इतना बड़ा कदम उन्होंने यूं ही नहीं उठाया होगा। हम लोगों को भी हर चीज की इंट्री करने की सख्त हिदायत देते थे। ऐसे में उन्होंने सुसाइड नोट लिखा, लेकिन वसीयत नहीं बनाई, यह समझ से परे है। अपनों के लिए एक लाइन में भी कोई बात नहीं कही। न कुहू के लिए, न ही चार महीने की बेटी ारा का उल्लेख किया।

दोबारा हो गए थे सक्रिय, लेने लगे थे बैठक

महाराज शादी के बाद कुछ दिन आश्रम की गतिविधियों से दूर रहने के बाद दोबारा सक्रिय हो गए थे। आश्रम में अप्रैल से भक्तों की बैठक लेने लगे थे। मजदूर दिवस पर मुंबई में भी कई कार्यक्रम में शामिल हुए। मराठवाड़ा और गुजरात भी गए।

ट्रस्ट पर किसी प्रकार का कर्ज नहीं

सद्गुुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट के सचिव तुषार पटेल ने बताया कि ट्रस्ट पर कर्ज की बात निराधार है। मैं दस साल की ऑडिट रिपोर्ट आपको दिखा सकता हूं। हमने हर साल पिछले साल के मुकाबले अधिक नए प्रोजेक्ट पर काम किया है।

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