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बिहार में शुक्रवार को नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार के एक वर्ष पूरे हो गए। इस दौरान कुछ मौके ऐसे भी आए जब दो मुख्य घटक दलों जदयू और भाजपा के रिश्ते सहज नहीं दिखे। चाहे वह रामनवमी के समय प्रदेश के कुछ जिलों में उत्पन्न स्थिति हो या लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कुछ नेताओं की बयानबाजी। एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) की ओर से बीच-बीच में हुई राजनीतिक बयानबाजी भी विशेष चर्चा में रही।
रामनवमी के अवसर पर ध्रुवीकरण का प्रयास
प्रदेश में इस वर्ष रामनवमी के अवसर पर ध्रुवीकरण का प्रयास हुआ। नतीजे में सात जिलों में तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई। भागलपुर में केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत के खिलाफ दर्ज मुकदमे के बाद एनडीए का अंदरूनी तनाव कोई भी महसूस कर सकता था।
इस बीच अश्विनी कुमार चौबे और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के बयानों ने दोनों दलों के बीच असहजता और बढ़ा दी। परन्तु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशासनिक कार्य कुशलता के कारण न केवल उत्पन्न स्थिति पर तुरंत काबू पा लिया गया। राजनीतिक स्तर पर भी एनडीए पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा। तब जदयू के प्रधान राष्ट्रीय महासचिव ने कहा था कि रामनवमी के मौके पर हुए उपद्रवों में जहां पश्चिम बंगाल में कई जानें गईं, वहीं नीतीश कुमार की कार्य कुशलता के कारण बिहार में ऐसा नही हुआ।
चुनावी चेहरों में उलझी सियासत
फिर जून में जदयू नेताओं की ओर से लोकसभा चुनाव में एनडीए के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार का नाम आगे किया गया। भाजपा की ओर से जवाबी बयान में कहा गया कि एनडीए का चेहरा नरेंद्र मोदी हैं। इससे पहले कि दोनों दलों के बीच खटास बढ़ती, मामले को बड़े नेताओं ने संभाल लिया। 12 जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और नीतीश कुमार की हुई मुलाकात के बाद तो दोनों दलों के रिश्ते और मधुर हो गए।
विपक्ष भी नहीं रहा खामोश
विपक्ष ऐसे मौकों पर खामोश नहीं रहा। एनडीए के अंदर आए कमजोर क्षणों का इसने राजनीति लाभ लेने का प्रयास किया। इस राजनीतिक उथल-पुथल में यह बात भी उल्लेखनीय है कि हर वर्ष रिपोर्ट कार्ड पेश करने वाली नीतीश सरकार, पिछले तीन सालों से अपना रिपोर्ट कार्ड पेश नहीं कर पाई है। 2016 में भाजपा, जदयू से अलग थी। तब भाजपा ने एक दिन पूर्व अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर दिया था।