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CBI विवाद में CJI ने पूछा-वर्मा के अधिकार वापस लेने से पहले कमेटी की सलाह लेने में क्या थी मुश्किल?

देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई में मचे घमासान पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई जारी है. बहस की शुरूआत करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने कहा कि निदेशक होने के बाद भी व्यक्ति अखिल भारतीय सेवा का हिस्सा होता है. चीफ जस्टिस रंजग गोगोई ने पूछा कि सीबीआई निदेशक के अधिकार वापस लेने पहले सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या मुश्किल थी?

गुरुवार को बहस की शुरूआत करते हुए ASG तुषार मेहता ने कहा कि अखिल भारतीय सेवाएं के सदस्यों के मामले का निपटारा सीवीसी एक्ट, 2003 की धारा 8(2) के तहत होता है. सवाल यह है कि सीबीआई का निदेशक बनने के बाद क्या कोई व्यक्ति अखिल भारतीय सेवाएं का सदस्य रहता है? पुलिस एक्ट में ऐसा कही नहीं लिखा कि जिस व्यक्ति की योग्यता निदेशक बनने की है उसे पुलिस सेवा पर लागू होने वाले नियमों से छूट है.

जिसके जवाब में सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि आलोक वर्मा की दलील यह है कि उनके अधिकार वापस लेने संबंधी कोई भी कार्रवाई वीनीत नारायण जजमेंट के विपरीत है और ऐसा करने के लिए सेलेक्शन कमेटी की स्वीकृति की आवश्यकता है. सीजेआई ने तुषार मेहता से कहा कि सीबीआई निदेशक के अधिकार वापस लेने पहले सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या मुश्किल थी? जिसके जवाब में ASG ने कहा कि यह ट्रांसफर का मामला नहीं था. तब सीजेआई ने कहा कि फिर भी सेलेक्शन कमेटी की सलाह लेने में क्या कठिनाई थी?

ASG तुषार मेहता ने कहा कि निदेशक अखिल भारतीय सेवा का सदस्य होता है. जिसपर सीजेआई ने कहा बेशक. तुषार मेहता ने कहा कि मान लीजिए कोई अधिकारी घूस लेता हुआ कैमरे पर पकड़ा जाता है और उसे फौरन निलंबित करना है, तब ऐसी स्थिति में इसका अधिकार केंद्र सरकार के पास है.

इससे पहले बुधवार को केंद्र की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि सीबीआई के दो शीर्ष स्तर के अफसरों के बीच की लड़ाई सार्वजनिक होने से देश की प्रमुख जांच एजेंसी की छवि खराब हो रही थी. इसी वजह के केंद्र को सीबीआई की साख बचाने के लिए दखल देना पड़ा.

गौरतलब है की सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को चुनौती दी है. कोर्ट में आलोक वर्मा की दलील है कि उन्हें हटाने से पहले नियम का पालन नहीं किया गया, क्योंकि सीबीआई के निदेशक को हटाने का फैसला एक कमेटी करती है. लेकिन उनके बारे में इस तरह की किसी भी कमेटी से मशविरा नहीं लिया गया.

वहीं, मामले में केंद्र की दलील है कि आलोक वर्मा के खिलाफ विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने सीवीसी के समक्ष शिकायत थी और सीवीसी की सिफारिश के आधार पर उन्हें छुट्टी पर भेजा गया. वहीं, बुधवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम को बताया कि सीबीआई के दो शीर्ष अधिकारी आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना की लड़ाई सार्वजनिक हो चुकी थी. जिससे प्रमुख जांच एजेंसी की छवि खराब हो रही थी, जिसे लेकर लोगों का भरोसा कम हो रहा था.

वेणुगोपाल ने कहा कि केंद्र सरकार और सीवीसी को यह फैसला करना था कि कौन सही है और कौन गलत? इसी वजह से सीवीसी की सिफारिश पर केंद्र को दखल देना पड़ा और दोनों शीर्ष अधिकारियों को जांच पूरी होने छुट्टी पर भेजना पड़ा. उन्होंने कोर्ट को बताया कि आलोक वर्मा को हटाया नहीं गया, बल्कि छुट्टी पर भेजा गया.

आपको बता दें कि सीबीआई के दो शीर्ष अफसरों के रिश्वतखोरी विवाद में फंसने के बाद 23 अक्टूबर को केंद्र ने ज्वॉइंट डायरेक्टर एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया था. इसी के साथ जांच पूरी होने तक निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेजने के साथ कुछ अन्य अधिकारियों का तबादला कर दिया गया था.

दरअसल, राकेश अस्थाना और उनकी टीम के एक डीएसपी पर मीट कारोबारी मोइन कुरैशी की जांच मामले में व्यापारी सतीश साना के मामले को रफा- दफा करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है. वहीं, अस्थाना का आरोप है कि रिश्वत उन्होंने नहीं बल्कि आलोक वर्मा ने ली थी.

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