मध्य प्रदेश

प्याज का खेल, खिलौना बने किसान

मध्य प्रदेश में किसान एक बार फिर परेशान हैं। मंदसौर, नीमच की मंडियों में प्याज की कीमत पचास पैसे प्रति किलो तक ही मिल रही है, तो उनकी नाराजगी खुलकर सामने आने लगी है। प्याज को बेचने के लिए मंडी तक लाने का खर्च नहीं निकल पाने से गुस्साए किसान प्याज मंडी में छोड़कर जा रहे हैं। ये हालात तब हैं जब गत वर्षों में सरकार खुद करोड़ों रुपए की प्याज खरीदकर सड़ा चुकी है। ऐसी स्थिति दोबारा न हो, इसके लिए उसने खरीदी से तो तौबा कर लिया पर किसान आज भी बाजार के हाथ का खिलौना बना हुआ है। इससे उसे बचाने, उसकी प्याज की फसल को सही दाम दिलवाने की प्रदेश सरकार के पास फिलहाल तो कोई रीति-नीति नहीं है।

पिछले कुछ सालों में किसानों को जब लहसुन के भाव नहीं मिले तो उन्होंने प्याज की खेती की ओर रुख इस उम्मीद के साथ किया कि यह कम से कम घाटे का सौदा तो नहीं रहेगा। इसी उम्मीद के साथ किसान ट्रॉलियों में प्याज भरकर मंडियों में पहुंचे पर जब बोली लगी तो दो साल पुराने जख्म हरे हो गए। दरअसल, प्याज के दाम छह-सात रुपए प्रति किलो से कम मिलने पर इसकी खेती घाटे का सौदा बन जाती है। ऐसे में दाम पचास पैसे प्रति किलो ही मिलने पर किसानों में गुस्सा आना जायज ही माना जाएगा। यह देखना भी उपयुक्त होगा कि इस स्थिति के जिम्मेदार कारक कौन से हैं।

मुख्य रूप से देखा जाए तो मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन में प्याज की खेती परंपरागत रूप से बहुतायत में नहीं होती थी। आमतौर पर सितंबर से लेकर नवंबर तक प्याज की मांग अधिक होती है और भाव भी अच्छे मिलते हैं। इसे देखते हुए मालवा और निमाड़ क्षेत्र में किसानों ने प्याज की खेती का रुख किया लेकिन बाजार नहीं मिला। मंडियों में भाव अविश्वसनीय रूप से कम मिले। इतने कम कि किसान अब खुद को बाजार के हाथ का खिलौना मानने लगे हैं।

40 बीघा खेत में पैदा हुए प्याज को घर में रखकर बैठे रतलाम जिला पंचायत के उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ का कहना है कि लहसुन को छोड़कर प्याज की खेती इस भरोसे में की थी कि अच्छे दाम मिलेंगे पर उपज लेकर मंडी में जाते हैं तो भाव देखकर घबराहट होने लगती है। पिछली बार तो सरकार ने भावांतर भुगतान योजना का लाभ दिया था पर इस बार तो उसकी भी बात नहीं हो रही है। सरकार ने दावे तो बहुत किए थे पर इसकी खरीदी और खपाने की दिशा में कुछ नहीं हुआ।

देरी से बुआई और मौसम अनुकूल न होने से गुणवत्ता में कमी

उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों की मानें तो खरीफ सीजन में देरी से प्याज की खेती उपयुक्त नहीं है। दरअसल, अक्टूबर-नवंबर में ही प्याज के भाव बेहतर रहते हैं। प्याज की फसल लगभग 120 दिन में तैयार होती है। प्रदेश में जुलाई में सात हजार हेक्टेयर रकबे में प्याज लगाई गई थी। इसके बाद अगस्त- सितंबर तक लगभग आठ हजार हेक्टेयर में बोवनी हुई। जुलाई में बोई गई प्याज अक्टूबर-नवंबर में मंडी में आ गई तो उसे ठीक भाव मिला लेकिन सितंबर में बोई गई प्याज अब मंडी में है इसलिए भाव नहीं मिल रहे हैं।

इस मौसम में गुणवत्ता की दृष्टि से भी प्याज कमजोर होती है। इस मौसम में व्यापारियों की प्राथमिकता महाराष्ट्र की प्याज ही रहती है। अधिकारियों का दावा है कि अधिकांश मंडियों में किसानों को प्रति क्विंटल पांच सौ रुपए से ज्यादा मिले हैं। मंदसौर, रतलाम, नीमच, शाजापुर की मंडियों के भाव देखे जाएं तो छह फीसदी से कम प्याज को ही तीन सौ रुपए क्विंटल से कम भाव मिले हैं।

शुरुआत हुई थी एक हजार रुपए से, अब 50 रुपए प्रति क्विंटल

मंदसौर मंडी में प्याज की आवक नवंबर के पहले सप्ताह से हुई थी। इस दौरान प्याज के भाव एक हजार रुपए क्विंटल से लेकर 1200 रुपए क्विंटल तक रहे थे। अच्छे भाव से किसान तेजी से प्याज लेकर मंडी में पहुंचने लगे तो अगले दस दिनों में भाव 300 रुपए क्विंटल तक आ गए। इसके बाद भाव में गिरावट जारी रही और अब प्याज 50 रुपए से 300 रुपए क्विंटल तक खरीदा जा रहा है। मंदसौर मंडी में लगभग 50 व्यापारी प्याज खरीदी का कार्य करते हैं पर किसी के पास प्याज का भंडारण करने के लिए वातानुकूलित गोदाम नहीं हैं।

यहां से प्रतिदिन प्याज के लगभग 50 ट्रक दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश की प्रमुख मंडियों में जा रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि इस बार नासिक में प्याज की फसल अच्छी होने से दिल्ली में भाव कम ही मिल रहे हैं। इस कारण यहां भाव नीचे आ गए हैं। भाड़ा जोड़कर भी दिल्ली में बमुश्किल 400-500 रुपए क्विंटल के दाम मिल रहे हैं। वहां के व्यापारी इसे ज्यादा में बेच रहे हैं। मंडी में अभी प्रतिदिन प्याज की आवक 4-5 हजार बोरी हो रही है।

अभी तक नहीं बन पाई रणनीति

जून 2017 में हुए बड़े किसान आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार ने तय किया था कि किसानों को उपज के वाजिब दाम दिलाने के लिए रणनीति बनाई जाएगी। किस जिले में किसान किस फसल की खेती करें, इसको लेकर पुख्ता योजना बनाई जानी थी पर कोई ठोस काम नहीं हुआ। कृषि हो या उद्यानिकी विभाग, वे सिर्फ एडवायजरी जारी करने तक सीमित रह गए हैं जबकि उनका मुख्य काम योजना बनाने के साथ किसानों को जागरूक करना भी है।

किसानों पर ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं

पूर्व कृषि संचालक डॉ.जीएस कौशल कृषि और उद्यानिकी विभाग के तर्कों से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि किसानों पर ठीकरा फोड़ना उचित नहीं है। जबसे सिंचाई के साधन बढ़े हैं तब से किसान बहुफसलीय खेती करने लगे हैं। अच्छा बीज मिलने से उत्पादन भी बढ़ा है लेकिन बाजार किसान की जरूरत की वजह से उसका फायदा उठाने में लगा हुआ है। भंडारण के पुख्ता इंतजाम नहीं होने के कारण किसान फसल आते ही उसे मंडी में लेकर पहुंच जाता है। इसका फायदा व्यापारी और बिचौलिए उठाते हैं और मनमाने भाव देते हैं। पांच साल से स्टोरेज बनाने की बातें हो रही हैं पर जमीन पर कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। जब तक सरकार उपज की खपत का मैकेनिज्म नहीं बनाती है, तब तक यह समस्या बरकरार रहेगी। इसके लिए देश और विदेश में नए बाजार खोजने होंगे।

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