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साधारण अपराध हो चाहे आतंकी हमला हो, पुलिसकर्मी के बलिदान से ही हम रहते हैं महफूज.

भारत में पुलिसकर्मियों की कमी है। संयुक्त राष्ट्र के मानक के मुताबिक प्रति एक लाख लोगों पर करीब 230 पुलिसकर्मी होने चाहिए। एनसीआरबी के 2013 के आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय औसत 141 है। उत्तर प्रदेश में प्रति एक लाख जनसंख्या पर पुलिसकर्मियों की संख्या 78, बिहार में 77, राजस्थान में 115, मध्यप्रदेश में 112 है। यह आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि एक पुलिसकर्मी को अपने काम को किस तरह से अंजाम देना होता है।

आजादी के बाद से भारतीय पुलिस ने उल्लेखनीय काम किया है। इंडियन पुलिस जर्नल के अनुसार, आजादी के बाद 1957 तक देश में शहीद होने वाले जवानों की संख्या 557 थी। 2018 में इनकी अब तक की कुल संख्या 34842 पहुंच गई।

पुलिस सरकार की पहली एजेंसी है जो लोगों को जरूरत होने पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देती है। फिर चाहे देश में कोई आतंकी हमला हो या फिर साधारण अपराध, लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने की स्थिति हो या फिर कोई तबाही, हर वक्त पुलिस सामने होती है। शांतिपूर्ण वातावरण को उपलब्ध कराने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी पुलिस पर होती है।

जब हम राज्य पुलिस की बात करते हैं तो वह संबंधित राज्य सरकार के अंतर्गत आती हैं। इसके अतिरिक्त अद्र्धसैनिक बल जिनमें सीआरपीएफ, बीएसएफ, असम राइफल्स, आइटीबीपी, एनएसजी ऐसे बल हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने विशेष कार्यों के लिए रखा है।

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