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षटतिला एकादशी व्रत इस कथा के बिना है अधूरा

सनातन धर्म एकादशी तिथि भगवान विष्णु की प्रिय है। पंचांग के अनुसार, माघ महीने की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा-व्रत करने से का विधान है। इस बार फरवरी महीने में षटतिला एकादशी आज है। जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत करते हैं। उन्हें षटतिला एकादशी की व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। वरना पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। चलिए जानते हैं षटतिला एकादशी व्रत कथा के बारे में।

षटतिला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी थी। धर्मपारायण होने के बाद भी वह हमेशा पूजा और व्रत करती थी, लेकिन कभी दान नहीं करती थी और न ही देवी-देवताओं और ब्राह्मणों को धन और अन्न का दान दिया था। ब्राह्मणी की पूजा और व्रत से जगत के पालनहार भगवान विष्णु प्रसन्न थे, उन्होनें सोचा कि ब्राह्मणी ने पूजा और व्रत से अपने शरीर को शुद्ध कर लिया है। ऐसे में उसे बैकुंठ लोक तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन इसने कभी जीवन में दान नहीं किया है, तो बैकुंठ लोक में इसके भोजन का क्या होगा?

इन सभी बातों को सोचने के बाद भगवान श्रीहरी ब्राह्मणी के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। भगवान विष्णु के भेष में साधु को ब्राह्मणी ने भिक्षा में एक मिट्टी का ढेला दे दिया। भगवान उसे लेकर बैकुंठ लोक में लौट आए। कुछ समय के पश्चात ब्राह्मणी का देहांत होने के बाद वह बैकुंठ लोक में आ गई।

ब्राह्मणी को भिक्षा में मिट्टी को देने की वजह से बैकुंठ लोक में महल प्राप्त हुआ। लेकिन उसके घर में अन्न आदि कुछ भी नहीं था। ये सब देख भगवान श्रीहरी से ब्राह्मणी ने बोला कि मैंने जीवन में सदैव पूजा और व्रत किया, लेकिन मेरे घर में कुछ भी नहीं है।

भगवान ने उसकी समस्या सुन कर कहा कि तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिलकर षटतिला एकादशी व्रत और दान का महत्व सुनों। उसका पालन करो, तुम्हारी सारी गलतियां माफ होंगी और मानोकामानाएं पूरी होंगी। ब्राह्मणी ने देवियों से षटतिला एकादशी का महत्व सुना और इस बार व्रत करने के साथ तिल का दान किया। मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है।

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